बैकुंठ चतुर्दशी मेले में आयोजित हुआ कवि सम्मेलन
सबसे तेज प्रधान टाइम्स गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल। बैकुंठ चतुर्दशी मेले की चौथी संध्या पर आयोजित हिंदी-गढ़वाली कवि सम्मेलन में कवियों ने बिखेरी बहुरंगी छटा। कवयित्री साइनीकृष्ण उनियाल ने सरस्वती वंदना का मधुर कंठ से पाठकर कवि सम्मेलन का विधिवत शुभारंभ किया। डॉ.प्रकाश चमोली की अध्यक्षता में संपन्न हुए कवि सम्मेलन में गढ़वाली लोकभाषा के कवि संदीप रावत ने गढ़वाली रचनाओं की शानदार प्रस्तुति देकर समा बांध दिया। देहरादून से पधारे डिप्टी कमिश्नर जी.एस.टी.कुमार विजय द्रोणी ने खूबसूरत ग़ज़ल के अशरार पढ़कर खूब वावही लूटी।हिंदी भाषा की कवयित्री अनीता काला ने प्रकृति के चितेरे कवि स्व.चंद्र कुंवर बर्तवाल के जीवन वृत्त पर केंद्रित रचना का गायन कर उपस्थित श्रोताओं का मन मोह लिया। जय कृष्ण पैन्यूली ने अपनी तेवरी रचनाएं सुनाकर सभागार को तालियों से गुंजायमान रखा। चौबट्टाखाल से पधारे प्रसिद्ध गढ़वाली कवि गिरीश सुंदरियाल के गढ़वाली गीतों का सुधी श्रोताओं ने खूब आनंद लिया। सुविख्यात गढ़ कवि देवेन्द्र उनियाल ढूंगू के चुटीले व्यंग्य भी खूब सराहे गए।कवि सम्मेलन का संचालन नीरज नैथानी ने किया। डॉ.प्रकाश चमोली ने हिंदी, गढ़वाली एवं संस्कृत भाषा में विविध रचनाएं पढ़ने के साथ अध्यक्षीय उद्बोधन दिया। पूर्व जिला पंचायत सदस्य राजेन्द्र सिंह बिष्ट जी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। भाजपा मण्डल अध्यक्ष जितेन्द्र धिरवांण,जिला व्यापार एवं उद्योग मंडल के जिला अध्यक्ष वासुदेव कण्डारी,श्रीनगर व्यापार सभा के अध्यक्ष दिनेश असवाल,वरिष्ठ रंगकर्मी विमल बहुगुणा विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। उप जिलाधिकारी नुपुर वर्मा,नगर सहायक आयुक्त बंगारी,लेखाधिकारी दिगंबर सिंह ने आमंत्रित कवियों को शाल एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। रचनाएं-नीरज नैथानी-लिखूंगा बेशक बदस्तूर बेहिसाब लिखूंगा,मैं नश्तर नोक नमक तेजाब लिखूंगा। साइनीकृष्ण उनियाल-रक्षक की नाक के नीचे भक्षक हो रही बेटियां-कुमार विजय द्रोणी-जमाना बड़ा खराब है,खुद को जरा संभाला करो,अंधेरा दिलों में बहुत है,मुहब्बत का उजाला करो। संदीप रावत-हौर्यूं का उज्याळा मा चमकण छोड़ि द्यावा तुम, बस जरा जोगेणु सी सक्या जोड़ि ल्यावा तुम। देवेंद्र अनियाल-कनमा होण भल्यार,यख चकड़ेतौं को राज हेव्गी।कनमा मौलला घौ दुखदा मां जब खाज हेव्गी। जय कृष्ण पैन्यूली-जिन रास्तों से गुजरो,जमाने में नजीर बना डालो, गेहूं पेट में रहो गुलाब को जमीर बना लो आदि गढ़ कवियों ने अपने बिखरी बहुरंगी छटा।