स्त्री चरित्र को शर्मसार करने वाले सभ्य-विकसित समाज नहीं--डॉ.शंकर काला
स्त्री चरित्र को शर्मसार करने वाले सभ्य-विकसित समाज नहीं--डॉ.शंकर काला
सबसे तेज प्रधान टाइम्स गबर सिंह भण्डारी श्रीनगर गढ़वाल। स्त्री चरित्र को शर्मसार करने वाले समाज या राष्ट्र अपनी बेटियों,माताओं-बहनों से वैश्यावृत्ति करवाता हो,जो अपने बच्चों के यौन-शोषण को नहीं रोक पाता हो अपने नागरिकों को कालाबाजारी,स्मगलिंग,नशे से छुटकारा नहीं दिला पाता हो वह देश या समाज चाहे कितना ही धनी हो,उस देश की अर्थव्यवस्था कितनी ही सुदृढ़ हो,वहां की तकनीकी शिक्षा चिकित्सा प्रशासन सेना कितनी ही विकसित होने का दावा करें,लेकिन माता-बहनों,बेटियों,बच्चों की वैश्यावृत्ति से अपनी राजकीय-आय राज्य-आय (नेशनल रेविन्यू) प्राप्त करता हो ऐसे देश,ऐसे समाज मात्र, पाशविक प्रवृत्ति के ही माने जाते हैं। वे राज्य समाज और देश न तो विकसित हैं और ना ही सभ्य।वे असभ्य और अविकसित हैं और रहेंगे और ऐसे ही माने जाते रहेंगे। वे युगों तक घृणा के पात्र ही रहेंगे। कोई भी सभ्य समाज और देश का कानून कैसे कह सकता है कि वैश्यावृत्ति करो और सरकारी आय में वृद्धि करो। यह कुत्सित पृवत्ति धन कमाने की लालसा और लालच से आयी हैं और पंचतारा भोगवादी पर्यटन की देन है। जिसके कारण असहाय गरीब और जरूरतमंद लोगों,उनके रहने सहन प्रकृति पर्यावरण जल जंगल जमीन संस्कृति,चरित्र सभी कुछ का शोषण हो रहा है। विश्व पर्यटन संगठन को पर्यटन की परिभाषा ठीक करनी ही होगी। विश्व को अहिंसा प्रेम सत्यता और स्वच्छता प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करने वाले "गांधीयन पर्यटन" को अपनाना ही होगा इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है।। गरीब का भी भ्रमण का प्रकृति प्रदत्त मानवाधिकार हैं उसे मान्यता देनी होगी और उनके लिए भी नियोजन और व्यवस्थाएं करनी ही होंगी। उक्त आशय का प्रत्यावेदन "विपरो"और "गांधीयन पर्यटन" के संस्थापक डॉ.शंकर काला ने संयुक्त राष्ट्र संघ,विश्व पर्यटन संगठन,और नीति आयोग भारत सरकार को प्रेषित किया है विगत 40 वर्षों से इस सामाजिक आंदोलन को अविरल गति देने वाले डॉ.शंकर काला,पर्यटन विषय में डाक्ट्रेट हैं और राष्ट्रीय स्तरीय सम्मानों से सम्मानित हैं और पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा,चण्डी प्रसाद भट्ट,राधाबहन,विमला बहुगुणा,डॉ.डी.डी,पंत जैसे बुद्धिजीवियों ने उनके विचारों को सहमति प्रदान की है।