तीर्थों में की गई साधना से मिलती है अलौकिक शक्ति - डॉ. पण्ड्या
सचिन शर्मा
हरिद्वार, 1 अप्रैल। अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ प्रणव पण्ड्या ने कहा कि नवरात्र अनुष्ठान के दौरान प्रयागराज जैसे तीर्थ स्थान में श्रीराम कथा सुनने का अवसर सौभाग्य से मिलता है। परम पूज्य गुरुदेव शांतिकुंज को गायत्री तीर्थ के रूप में स्थापित किया है। यह एक जाग्रत तीर्थ है। गायत्री साधना के पवित्र और महत्त्वपूर्ण स्थान है। गायत्री साधना के साथ श्रीराम कथा का श्रवण से मन और आत्मा दोनों शुद्ध व निर्मल होता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने प्रयागराज की महिमा को अलौकिक कहते हैं।
मानस मर्मज्ञ डॉ प्रणव पण्ड्या चैत्र नवरात्रि के अवसर पर आयोजित विशेष व्याख्यानमाला में उपस्थित देश विदेश से गायत्री तीर्थ शांतिकुंज आये गायत्री साधकों को संबोधित कर रहे थे। अध्यात्म क्षेत्र के प्रखर विचारक श्रद्धेय डॉ पण्ड्या ने कहा कि मनोयोगपूर्वक साधना करने से साधक की दृष्टि निर्मल होती है। साधक का व्यक्तित्व कैलाश शिखर की भांति पवित्र और दिव्य होता है। जैसे कैलाश पर्वत अपनी स्थिरता, महानता और शांति के लिए प्रसिद्ध है, वैसे ही साधक की दृष्टि भी साधना के माध्यम से विकसित और स्पष्ट के प्रति जागरूक होती है। अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख ने कहा कि भगवान शिव योगविद्या के स्रोत एवं परम आचार्य हैं। योग साधना की गहनता को सरलता से सिखाने में माहिर हैं। उनकी साधना और ज्ञान की गहराई ही परम आचार्य की परिभाषा है, जो साधकों को सरलता से गहन योग साधना के मार्ग पर मार्गदर्शन देते हैं।
इससे पूर्व संगीत विभागों के भाइयों ने ‘आओ मन में बसा लें श्रीराम को, चलों तन से करें प्रभु काम को’ भाव गीत से साधकों के साधनात्मक मनोभूमि को पुष्ट किया। श्रोताओं ने भावविभोर हो गीत एवं संदेश का श्रवण किया। इस अवसर पर व्यवस्थापक श्री योगेन्द्र गिरि, पं. शिवप्रसाद मिश्र सहित भारत के विभिन्न राज्यों के अलावा कई देशों से आये गायत्री साधक उपस्थित रहे।
भूमि को उर्वर व संरक्षित रखना सबसे अहम ः डॉ चिन्मय पण्ड्या
देसंविवि में आयोजित भूमि सुपोषण एवं संरक्षण अभियान
अखिल विश्व गायत्री परिवार सदैव प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध रहा है। इसके अंतर्गत देव संस्कृति विश्वविद्यालय परिसर में भूमि सुपोषण एवं संरक्षण अभियान कार्यक्रम आयोजित हुआ। इसके अंतर्गत विशेषज्ञों ने युवा पीढ़ी को भूमि को उर्वर बनाए रखने एवं पर्यावरण को संरक्षित बनाने के विविध उपायों पर जोर दिया।
इस अवसर पर अपने संदेश में देसंविवि के प्रतिकुलपति युवा आइकान डॉ चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि भारत में लगभग 30 प्रतिशत भूमि क्षरण से पीड़ित है, जो हमारी भूमि के प्रति उदासीनता की ओर इंगित करती है। युवा आइकान ने कहा कि विश्व आज अपने पर्यावरण असंतुलन के गंभीरतम दौर से गुजर रहा है। अपने देश में भी तीव्रगति से हो रहे वायु, जल, भूमि प्रदुषण बहुत गंभीर एवं चुनौतीपूर्ण समस्याएँ हैं, जो मानव जीवन के लिए अत्यंत घातक हैं। प्रतिकुलपति ने कहा कि भारतीय दर्शन एकात्म विश्वदृष्टि में विश्वास करता है। संपूर्ण सृष्टि में प्रकृति एवं पर्यावरण के बीच एक अन्योन्याश्रित एवं अविभाज्य संबन्ध है।
युवा आइकान डॉ. पण्ड्या ने कहा कि इस अभियान के तहत देश भर में भूमि को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से प्राकृतिक और वैज्ञानिक उपायों का विस्तार किया जाना है। युवा आइकान ने जैविक खेती और प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन, जल-संरक्षण एवं वर्षा जल संचयन की नई तकनीकें, यज्ञ विज्ञान द्वारा भूमि की उर्वरता में सुधार, भूमि क्षरण को रोकने के लिए सामूहिक प्रयास आदि पर भी अधिक ध्यान देने की आवश्यकता पर जोर दिया।
अभियान के समन्वयक डॉ राजीव गुप्ता ने बताया कि इस दिशा में कार्य करने के लिए देसंविवि के युवा संकल्पित हुए। उन्होंने बताया कि अभी नहीं, तो कभी नहीं की तर्ज पर भूमि को उर्वर बनाने तथा संरक्षित किया जाना चाहिए, अन्यथा आने वाले समय में खाद्यानों की भारी कमी हो सकती है। इस अवसर पर अनेक विद्यार्थियों ने भूमि सुपोषण एवं पर्यावरण संरक्षण पर अपने विचार भी रखे।