निःस्वार्थ स्नेह - एम.एस.रावत
सबसे तेज प्रधान टाइम्स गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल। हमारे पास ऐसे कई आधार पर आदर्श लोगों की शृंखला है,जिनकी जीवन गाथाएं देश भक्ति का आधार हैं,जो हमारे महान मूल्यों को दर्शाता है,अनुरोध किये जाने पर दधीचि ने अपने जीवन की परवाह किए बिना अपने शरीर की सभी हड्डियां दान कर दी,उन्होंने आक्रमणकारियों को नष्ट करके दूसरों की रक्षा के लिए ऐसा किया और इस तरह सामाजिक कल्याण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई,राजा शिबी ने एक कमजोर पक्षी की जान बचाने के लिए अपने शरीर का मांस काट कर शिकारी पक्षी को दे दिया,ऐसे लोग हमारे आदर्श हैं। उन्हें अपने जीवन की कोई लालसा नहीं थी। बल्कि उन्होंने पूरे मनसे समाज के लिए अपना जीवन की कोई लालसा नहीं थी,बल्कि उन्होंने पूरे मन से समाज के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया,हमारे जीवन का सामाजिक ताना-बना ऐसे अनेक लोगों के उदाहरणों से बुना गया है,जिन्होंने भलाई के लिए स्वयं को पूरी तरह समर्पित कर दिया,ये हमारे संस्कृति में निहित आदर्शों और सिद्धांतों को समझने और उसे हृदय आत्मसात करने के लिये कठोर प्रयास करने होंगे,हमारे दैनिक जीवन की कार्य संचय को समझना होगा कि क्या हम इस मार्ग पर बढ़ रहे हैं। हमें अपने भीतर व्याप्त एकान्तता के तत्व को पहचानना होगा और इसे स्वयं में दृढ़तापूर्वक स्थापित करना होगा,तभी हम अपने समाज के प्रति करुणा और आत्मीयता का अनुभव करेंगे और इसी बात से हमारे भीतर राष्ट्रभक्ति की भावना हर्षोल्लास के साथ प्रभावित होगी,हमारे सामने अक्सर ये प्रश्न आते हैं। हमें अपने राष्ट्रीयता की पूजा क्यों करनी चाहिए,लोगो को दुःख-सुख हमे क्यों परेशान करे,इसके लिए हमको अपने समाज के लोगों के बीच एकात्मकता ओर समानता की भावना का अनुभव करना चाहिए कि क्या हमारा अस्तित्व इस समाज के बिना संभव है,तभी हम इन प्रश्नों के उत्तर जान पाएंगे और इससे हमारा जीवन बदल जाएगा,हम अपने आपको स्वार्थी विचारों तक सीमित नहीं रख सकते क्योंकि यह हमारी संस्कृति में निहित जीवन पद्धति है,हमें व्यक्तिगत महानता और प्रतिष्ठा की चाहत रहनी चाहिए परन्तु इसके आकर्षणों में स्वयं को पराधीन नहीं करना चाहिए बल्कि वह समाज का अभिन्न अंग है,हमारे आसपास के वातावरण में होने वाला परिवर्तन हमें इस विश्वास से नहीं डिगा सकता। अपनी संस्कृत हमे सीखती है कि निःस्वार्थ स्नेहपूर्ण व्यवहार वह प्रक्रिया है,जिसके द्वारा हम अपने राष्ट्र को चिरस्थाई गौरव प्रदान करते हैं। यदि हमअपनी संस्कृतिके अनुसार राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रके प्रति शाश्वत गौरव की अविरल धारा प्रवाहित करना चाहते हैं तो सभी में अपनत्व का आदर्श ही एक मात्र आधार है और निस्वार्थ स्नेह पूर्वक व्यवहार ही एकमात्र उपाय है,इसी में जीना इसी में मरने की धारणा का मतलब ही नि स्वार्थता है।