फूलदेई का त्यौहार नव वर्ष के शुभागमन को दर्शाता है - अखिलेश चमोला
सबसे तेज प्रधान टाइम्स गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल। राजकीय इंटर कॉलेज सुमाड़ी विकास खण्ड खिर्सू,जनपद पौड़ी गढ़वाल में वरिष्ठ हिंदी अध्यापक अखिलेश चंद्र चमोला ने फूलदेई पर्व का महत्व बताते हुए कहा है कि हिमालय की गोद में स्थित उत्तराखंड की पूरे भारत वर्ष में अपनी विशिष्ट पहचान है,अद्भुत तीर्थों की नगरी से आच्छादित उत्तराखंड अपने पर्व व त्योहारों के लिए भी प्रसिद्ध है,समय-समय पर यहां त्योहारों की छटा आपसी भाईचारे व प्रेम के भाव को प्रदर्शित करते हैं,ऐसा ही बाल पर्व फूलदेई का त्योहार है,जो प्रेम,स्नेह मेल मिलाप व नव वर्ष के शुभागमन के भाव को उजागर करता है। सदियों से उत्तराखंड में फूलदेई का त्योहार मनाया जाता रहा है,यह त्योहार चैत्र मास की सौर संक्रांति से मनाया जाता है। गढ़वाल मण्डल में पूरे महीने तक बच्चे प्रत्येक के घर में जाकर सुबह सुबह देहरी में फूल चढ़ाते हैं। कुमाऊं में फूल चढ़ाने की प्रक्रिया पूरे महीने तक चलती है। हमारे यहां बच्चों को भगवान का प्रतीक माना जाता है,यह भी सच है कि चैत्र मास में सौर मंडल में भी परिवर्तन होता है। नये वर्ष के रुप में पूरे मंत्री मंडल का नये रुप में अधिपत्य होता है। नये वर्ष का अभिनंदन करने वाले बच्चों को प्रत्येक घर से चावल और दाल के रूप में पारितोषिक दिया जाता है। बाल पर्व के फूल देई पर्व को फ्योली का फूल भी कहते हैं,यह फूल ज्यादा तर वसन्त के महीने में खिलता है। इस फूल के सन्दर्भ में एक लोककथा प्रचलित है। कहा जाता है कि गढ़वाल के सुरम्य आन्चल में एक राजकुमारी रहती थी,जो कि अपने आप में अद्वितीय सुन्दरी थी।जिसका नाम फ्योली था,एक राजकुमार का उससे प्रेम हो जाता है,वह राजकुमार विवाह करके उसे अपने घर ले जाता है। राजकुमारी की विरह वेदना में पहाड़ के अन्य पौधे भी मुरझा जाते हैं,पशु पक्षी भी उदास रहने लग जातें हैं,एक समय यह भी आता है कि फ्योली बीमार हो जाती है,अपने ससुराल में ही मर जाती है,ससुराल वाले उसे अपने जंगल में दफना लेते हैं,कुछ समय बाद वहां पर एक पीला फूल उग जाता है,जो कि हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है,सभी उस फूल को फ्योली के नाम से पुकारते हैं। फ्योली की याद में यह त्योहार मनाया जाता है,छोटे बच्चे इस त्योहार में अत्यधिक उत्साहित दिखाई देते हैं। यह त्योहार चैत्र मास में प्रथम तिथि को मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष यह त्योहार 14 मार्च व 15 मार्च को मनाया जाता है। अन्तिम दिन बच्चे घोघा माता की डोली की पूजा करके विदाई करते हैं। फूल देई खेलने वाले बच्चों को ही फूलारी कहा जाता है।घोघा माता को फूलों की देवी के रुप में माना जाता है। मान्यता है कि घोघा माता अपनी पूजा बच्चों के द्वारा ही कराने से खुश होती है,घोघा माता की पूजा में फ्योली और बुरांश के फूलों का प्रयोग किया जाता है।