श्री भगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ समापन
सचिन शर्मा
हरिद्वार। श्री भगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय में भारतीय ज्ञानपरम्परा से युवाओं का उत्थान विषय पर आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीयसङ्गोष्ठी का आज समापन किया गया। समापनसत्र में मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व कैबिनेट मन्त्री श्री मदन कौशिक उपस्थित रहे। जिन्होने अपने वक्तव्य में कहा कि वेद, उपनिषद्, दर्शन और संस्कृत के अन्य ग्रन्थों पर जब तक गम्भीरता पूर्वक शोध नहीं किया जाएगा; तब तक भारतीय ज्ञान परम्परा का अमृत समाज को नहीं मिल पाएगा। भारतीय ज्ञान परम्परा के माध्यम से भारत विश्व में अग्रणी बन सकेगा। भारतीय ज्ञान परम्परा के महत्त्व को अब विदेशी लोग भी मुक्त कण्ठ से ग्रहण कर रहे हैं। भारत के युवाओं का दायित्व है कि भारतीय ज्ञान परम्परा का गम्भीर अध्ययन करें। वक्तव्योपरान्त आदरणीय श्री मदन कौशिक जी द्वारा युवा महोत्सव में प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले छात्रों को भी सम्मानित किया। संस्कृत अकादमी के शोध अधिकारी डॉ. हरीश गुरुरानी ने कहा कि महर्षि कनाद, महर्षि पाणिनि आदि ऋषियों ने हजारों वर्ष पूर्व शब्द को नित्य अविनाशी बताया था। आज भी वैज्ञानिक ऋषियों के उक्त सिद्धान्त को काट नहीं पाए हैं। ऋषियों के सिद्धान्त को भारतीय ज्ञान परम्परा से ही जाना जा सकता है। चमन लाल डिग्री कॉलेज लण्ढोरा के प्राचार्य डॉ. सुशील कुमार उपाध्याय ने कहा कि हमारा समाज यह मानता है कि ज्ञान केवल पाश्चात्य विद्वानों के ग्रन्थों में ही हैं। हम हमेशा भारतीय ज्ञान परम्परा का उपहास करते रहे हैं। पुरातन इतिहास की खोज करने में भारतीयों ने रुचि नहीं दिखाई; अतः यह कार्य विदेशी कर रहे हैं और इसको एक विडम्बना ही कहा जा सकता है कि हम लोग अपन प्राचीन धरोहर का संरक्षण एवं संवर्धन नही कर सके है। हमें अपनी मातृभाषा के साथ जुड़ना पड़ेगा। हमें अपनी भाषा और सभ्यता पर गर्व करना होगा। भारतीय ज्ञान परम्परा के विकास के लिए हमें आधुनिक तकनीकी का ज्ञान भी करना होगा। डॉ. रीना वर्मा ने कहा कि महाभारत, गीता, रामायण के श्लोक हमें निराशा से आशा की ओर ले जाते हैं। युवाओं में नैतिकता, सदाचार तथा संस्कारों का समावेश भारतीय ज्ञान परम्परा के अद्ययन से ही सम्भव हो सकता है। डॉ. सुनीति आर्या ने कहा कि गुरुकुल शिक्षा परम्परा के बिना भारतीय शास्त्र के ज्ञान का विकास सम्भव नहीं है। गुरुकुल में आचार्य अपनी व्यवहार और शास्त्रज्ञान से भारतीय शास्त्र परम्परा का बोध कराते थे। डॉ. भूपेन्द्र कुमार ने कहा कि युवाओं में एक विशेष शक्ति होती है उनकी ऊर्जा का प्रयोग भारतीय ज्ञान परम्परा के विकास के लिए करना चाहिए। युवाओं को शारीरिक सौन्दर्य पर ध्यान न देकर आत्मिक सौन्दर्य पर बल देना चाहिए। माता-पिता और गुरुजनों की सेवा करना भारतीय ज्ञान परम्परा ही सिखाती है। डॉ. पद्मप्रसाद सुवेदी जी ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा के माध्यम से ही जीवन के उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। भारतीय ज्ञान परम्परा के माध्यम से ही आज का यूवा समाज तकनीकिस्तर पर सुदृढ़ हो सकता है। वराहमिहिर के गणितज्ञान को आज भी कोई असङ्गत नहीं बता सका है। भारतीय ज्ञान परम्परा के माध्यम से की जाने वाली कालगणना आज भी वैज्ञानिक है। डॉ. अनिल त्रिपाठी ने बताया कि जब तक युवा समाज भारतीय ज्ञान परम्परा का आश्रय नहीं लेगा, तब तक उसके उत्तम चरित्र का विकास सम्भव नही हो सकेगा।
सङ्गोष्ठी का आयोजन डॉ. रवीन्द्र कुमार तथा डॉ. आशिमा श्रवण ने किया। महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य डॉ. बी. के. सिंहदेव ने सभी आगुन्तक विद्वानों का धन्यवाद ज्ञापित किया एवं प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र वितरण करते हुए उनके उज्ज्वल भविषय की कामना की।
इस शुभ अवसर पर अनेक विद्वान एवं विदुषियों के साथ-साथ डॉ. संजीव कुमार, डॉ. अतुल चमोला, डॉ. मञ्जू पटेल, डॉ. आलोक कुमार सेमवाल, डॉ. अङ्कुर कुमार आर्य, श्री शिवदेव आर्य, श्री आदित्य प्रकाश, डॉ. सुमन्त कुमार सिंह, श्री एम. नरेश भट्ट, श्री मनोज कुमार, श्री अतुल मैखुरी आदि छात्र व कर्मचारी उपस्थित रहे।