हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला शुरू
सबसे तेज प्रधान टाइम्स गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल। श्रीनगर में आज 18 मार्च 2025 को हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर के शैक्षणिक गतिविधि केंद्र में उत्तराखंड राज्य विज्ञान प्रौद्योगिकी परिषद,उत्तराखंडी भाषा न्यास (उभान) एवं हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ हुआ। इस कार्यशाला का विषय उत्तराखंडी लोक भाषाओं के समानार्थी शब्दों का प्रयोग एवं समरूप साहित्य का निर्माण था। कार्यक्रम की शुभारंभ सरस्वती पूजन और संगीत विभाग के छात्र-छात्राओं द्वारा सरस्वती वंदना से हुआ। जिसके पश्चात संकायाध्यक्ष प्रो.मंजुला राणा मैम ने सभी गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया। यह कार्यशाला तीन सत्रों में विभाजित की गई है जिसमें प्रथम सत्र के प्रारंभ में उत्तराखंडी भाषा न्यास के सचिव डॉ.बिहारी लाल जलंधरी ने कार्यशाला के विषय पर प्रकाश डाला जिसमें उन्होंने अस्कोट से आराकोट तक एक उत्तराखंडी भाषा के निर्माण तथा कक्षा 1 से 10 तक उसे पढ़ाए जाने का प्रबल समर्थन किया। सत्र की मुख्य वक्ता डॉ.उमा मैठाणी पूर्व विभागाध्यक्ष हिंदी विभाग हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय ने अपने संबोधन में उत्तराखंडी भाषा के विकास के सभी आयामों जैसे लोकगीत,लोकसहित्य और भाषाई विविधता के संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया। इसके पश्चात प्रथम सत्र में वीरेंद्र दत्त सेमवाल द्वारा अध्यक्षीय संबोधन दिया गया तथा उन्होंने सभी हितधारकों से तन,मन,धन से उत्तराखंडी भाषा के विकास के लिए एकजुट होने की अपील की। इस सत्र में मंच संचालन डॉ.अनूप सेमवाल सहायक आचार्य हिंदी विभाग ने किया। वहीं द्वितीय सत्र में विशिष्ट वक्ता सुल्तान सिंह तोमर ने उत्तराखंड की 14 लोक भाषाओं में से एक मानक भाषा तथा सर्व स्वीकृत शब्दकोश के निर्माण की प्रक्रिया में सरकारी सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया। इस सत्र के मुख्य वक्ता प्रो.डी.आर.पुरोहित ने उत्तराखंडी भाषाओं के संरक्षण में उच्चस्तरीय फिल्मों,नाटकों,लोकगीतों और गुणवत्तापूर्ण साहित्य-सृजन की भूमिका को रेखांकित किया। इस सत्र के अन्य विशिष्ट वक्ता विजेंद्र ध्यानी ने अपनी भाषा में संवाद करने की आवश्यकता को प्रतिपादित किया और नई पीढ़ी को अपनी लोकसंस्कृति से जुड़ने का आह्वान किया। इस सत्र की अध्यक्षता कृष्णानंद मैठाणी ने की। उन्होंने उत्तराखंडी लोक भाषाओं की उपेक्षा पर चिंता व्यक्त की और इनके समृद्ध शब्द भंडार के लुप्त होने की आशंका जताई। उन्होंने कार्यशाला को उत्तराखंडी भाषाओं के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयास बताया। द्वितीय सत्र का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ.कपिल देव पंवार द्वारा किया गया। इस कार्यशाला में विभिन्न विभागों के सम्मानित प्राध्यापक,शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे। इस आयोजन ने उत्तराखंड की लोक भाषाओं के संरक्षण एवं विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण संवाद स्थापित किया और भावी पीढ़ी को अपनी भाषाई विरासत से जोड़ने का संकल्प लिया।