भारतीय किसान यूनियन क्रांति के पदाधिकारी व कार्यकर्ताओं ने दिया सामूहिक इस्तीफा
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गुलफान अहमद
रुड़की। भारतीय किसान यूनियन क्रांति (अराजनीतिक) संगठन में भूचाल नहीं, बल्कि एक ऐसा तूफान आया है, जिसने संगठन की नींव तक को हिला दिया है। संगठन के सैकड़ों पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने एक साथ अपने-अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है। यह कोई मामूली विद्रोह नहीं, बल्कि एक ऐसा विस्फोट है, जिसने संगठन की साख को चूर-चूर कर दिया और इसके भविष्य पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। इस बगावत की आग के पीछे संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष विकास सैनी की नीतियाँ और उनकी कथित तानाशाही मुख्य वजह बताई जा रही है।
इस पूरे घटनाक्रम के सूत्रधार गजेंद्र चौधरी ने अपनी बात को बेहद तीखे और बेबाक अंदाज में सामने रखा। उन्होंने कहा, "विकास सैनी ने अपनी गलत नीतियों और मनमाने फैसलों से संगठन को निजी जागीर बना लिया था। उनकी हरकतों ने न सिर्फ हमें अपमानित किया, बल्कि संगठन के मूल मकसद को ही कुचल दिया। हमारा सब्र अब जवाब दे चुका है।" गजेंद्र के साथ तनुज चौधरी, आशीष चौहान, अनुज चौहान, विकास पवार, मोहित चौधरी, रजत चौहान, शुभम चौधरी, राजवीर सिंह, अंशुल कश्यप जैसे प्रमुख चेहरों और सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने संगठन से किनारा कर लिया। गजेंद्र ने साफ-साफ शब्दों में कहा, "यह हमारा अपना फैसला है। न कोई दबाव, न कोई साजिश। हम विकास सैनी की गुलामी से आजाद होकर अपने सम्मान और किसानों की असली लड़ाई के लिए आगे बढ़ रहे हैं।"
इस विद्रोह में गजेंद्र चौधरी को उनके साथियों का अटूट समर्थन मिला है। अनुज सासी ने विकास सैनी पर सीधा हमला बोलते हुए कहा, "विकास सैनी ने संगठन को अपने अहंकार का अड्डा बना दिया था। गजेंद्र जैसे समर्पित नेता का अपमान हुआ, तो हमारा क्या हाल होगा? हम सब आज भारतीय किसान यूनियन क्रांति को ठोकर मारकर निकल रहे हैं। यह कदम सिर्फ संगठन छोड़ने का नहीं, बल्कि अपनी अस्मिता और आत्मसम्मान को बचाने का है।" अनुज ने आगे कहा, "विकास सैनी की नीतियाँ नहीं, बल्कि उनकी जिद और तानाशाही ने संगठन को खोखला कर दिया।"
यह इस्तीफों का सैलाब संगठन के लिए ऐसा झटका है, जिससे उबरना अब नामुमकिन-सा लग रहा है। विकास सैनी की नीतियों ने संगठन को इस कगार पर ला खड़ा किया है कि इसका पूरा ढांचा अब धूल में मिलता नजर आ रहा है। सूत्रों की मानें, तो विकास सैनी का नेतृत्व शुरू से ही विवादों में रहा। उनकी मनमानी, कार्यकर्ताओं की अनदेखी, और संगठन को एक व्यक्ति-केंद्रित मशीन में तब्दील करने की कोशिश ने इस आग को भड़काया। गजेंद्र चौधरी ने यह भी कहा, "हमें किसी से व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं, लेकिन विकास सैनी ने हालात ऐसे बना दिए कि हमारे पास इस्तीफा ही आखिरी रास्ता बचा। उनकी हर नीति किसानों के हितों के खिलाफ थी, और संगठन को मजबूत करने की बजाय उन्होंने इसे कमजोर करने का हर मुमकिन प्रयास किया।"
विकास सैनी की कमजोरियों को टेक्निकल तरीके से देखें, तो उनकी नीतियों में दूरदर्शिता का अभाव साफ झलकता है। पहला, संगठन के भीतर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पूरी तरह खत्म कर दिया गया। फैसले लेते वक्त न तो पदाधिकारियों से सलाह ली गई, न ही कार्यकर्ताओं की राय को तरजीह दी गई। दूसरा, उनकी नीतियाँ किसानों की मूल समस्याओं—जैसे एमएसपी, कर्जमाफी, या बिजली-सिंचाई जैसे मुद्दों—को हल करने में नाकाम रहीं। तीसरा, विकास सैनी ने संगठन को एकजुट रखने के बजाय अपने चहेतों को बढ़ावा दिया, जिससे असंतोष की आग भड़की। चौथा, उनकी कथित तानाशाही ने संगठन की विश्वसनीयता को खत्म कर दिया, और कार्यकर्ताओं का भरोसा टूट गया। इन सबके चलते संगठन अब जमीन पर आकर बिखर चुका है।
इस घटना ने न सिर्फ संगठन के भीतर तहलका मचा दिया, बल्कि बाहर भी सनसनी फैला दी है। लोग सवाल उठा रहे हैं—क्या विकास सैनी की नाकामी ने संगठन को इस हाल में पहुंचाया, या इसके पीछे कोई बड़ी साजिश है? क्या गजेंद्र और उनके साथी अब नया संगठन खड़ा करेंगे? क्या यह विद्रोह एक नई क्रांति की शुरुआत है? जवाब भले ही वक्त देगा, लेकिन यह साफ है कि विकास सैनी का नेतृत्व अब इतिहास के कूड़ेदान में जा चुका है। "जय जवान, जय किसान" का नारा लगाने वाले ये लोग अब अपने सम्मान की जंग को हर कीमत पर लड़ने को तैयार हैं, और संगठन का जो बचा-खुचा ढांचा है, वह भी अब टिकने वाला नहीं दिखता। विकास सैनी की कुर्सी खाली हो या न हो, उनका खेल अब खत्म माना जा रहा है।